Thursday, April 2, 2020

पराधीन आहे जगती पूत्र मानवाचा



                                                          कुश लव रामायण गाती 

 पुत्र सांगती चरीत पित्याचे 
ज्योतीने तेजाची आरती 


     


पुरुषार्थाची चारी चौकट 
त्यात पहाता नीज जीवनपट 
प्रत्यक्षाहुन प्रतिमा उत्कट 
प्रभूंचे लोचन पाणावती 


स्वयंवर झाले सीतेचे

मुग्ध जानकी दुरून न्याहळी राम धनुर्धार
नयना माजी एकवटुनिया निज शक्ती सारी


 


  नीलकाशी जशी भरावी उष्ण:प्रभा लाला 
 तसेच भरले रामांगी मधु नुपूरस्वरतालं 
 सभामंडपी मिलन झाले मायाब्रम्हाचे 


                                                                मोडू नका वचनास

 दंडकवनी त्या लढता शंभर 
  इंद्रासाठी घडले संगर 
    रथास तुमच्या कुणी घातला 
 निजबाहूंचा आस 




    एक वराने द्या मज आंदण  
 भरतासाठी हे सिंहासन 
 दुज्या वराने चौदा वर्षे
रामाला वनवास 


                                                                 माता न तू वैरिणी
   
कसा शांतवू शब्दाने मी कौसल्येचा शोक 
   सुमित्रेस त्या उदासवाणे गमतील तिन्ही लोक 
   कुठल्या वचने नगरजनांची करू मी समजावणी 





 वनाहुनही उजाड झाले रामाविण हे धाम 
वनांत हिंडून धुंडून आणिन परत प्रभू श्रीराम 
 नका आडवे येऊ आता कुणी माझिया पणी 


पराधीन आहे जगती पूत्र मानवाचा

दोन ओंडक्यांची होते 
सागरात भेट 
एक लाट तोंडी दोघा 
पुन्हा नाही गाठं


     


अयोध्येस होत तू राजा 
रंक मी वनीचा 
पराधीन आहे जगती पुत्र मानवाचा 





प्रत्येकाने एकदा तरी या गीतांचे शब्द वाचावे .
ऑन लाईन सहज उलब्ध आहेत